बाबा सिद्ध चानो जी कौन हैं, जिन्हें हिमाचल में लोग कलयुग की सच्ची सरकार मानते हैं?
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के देहरा में प्रागपुर के निकटवर्ती डांगड़ा गांव में स्थित बाबा सिद्ध चानो मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। बाबा सिद्ध चानो जी को न्याय का देवता माना जाता है। लोगों का मानना है कि बाबा सिद्ध चानो के दर में सच्चे मन से मन्नत मांगी जाए तो वो हमेशा पूरी होती है। बाबा सिद्ध चानो इतने दयालु हैं कि वह अपने दरबार में सच्ची श्रद्धा से मन्नत मांगने वाले प्रत्येक श्रद्धालु की पुकार उसी वक्त सुनकर अपना फैसला सुना देते हैं। यही कारण है कि बाबा के दर हिमाचल भर से ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों से भी भक्त खींचे चले आते हैं।
बाबा सिद्ध चानो जी की कहानी
मंदिर के पुजारियों के अनुसार, बाबा सिद्ध चानो जी मंदिर 400 वर्ष से भी अधिक पुराना है। पौराणिक कथा के अनुसार, बाबा सिद्ध चानो जी कभी राजा कैलाश के पुत्र थे। राजा कैलाश भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे, लेकिन उनके राज्य में सुख और शांति होने के बावजूद राजा हमेशा दुखी रहते थे।
एक दिन उसने अपने नौकरों को बताया कि वह क्यों उदास है। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का बहुत दुख है कि उनके कोई संतान नहीं है. सेवकों ने उन्हें भगवान शिव की शरण लेने की सलाह दी। राजा कैलाश ने कठोर तपस्या की, जिसके लिए भगवान शिव प्रकट हुए और राजा को वरदान देने का वादा किया। राजा कैलाश ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा प्रकट की। भगवान शिव ने उन्हें चार पुत्रों का आशीर्वाद दिया और कहा कि उनका सबसे छोटा पुत्र बहुत शक्तिशाली होगा।
कुछ समय बाद रानी ने चार पुत्रों को जन्म दिया। उनका नामकरण हुआ-कानो, वानो, सदुर और सबसे छोटे चाणुर। महल में उनकी देखभाल के लिए रूक्को नाम की दाई नियुक्त थी।
समय के साथ, चारों भाई युवा हुए। चाणुर सबसे अधिक बलशाली और तेजस्वी थे। एक बार, भाइयों के बीच तलवारबाजी का अभ्यास चल रहा था। अचानक, बड़े भाइयों की तलवारें टूट गईं। उन्होंने माता से शिकायत की कि चाणुर ने उनकी तलवारें तोड़ दी हैं।
माता को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ। उन्हें समझ नहीं आया कि इतना छोटा बालक तलवारें कैसे तोड़ सकता है। उन्होंने भाइयों को बाहर जाने को कहा और चाणुर से पूछताछ की।
दुर्भाग्य से, इस घटना ने बड़े भाइयों के मन में चाणुर के लिए ईर्ष्या उत्पन्न कर दी। एक दिन, माता ने चाणुर को बगीचे से फल लाने का आदेश दिया। फल ऊँचे पेड़ पर थे। चाणुर ने पेड़ को जड़ से उखाड़कर माता के सामने रख दिया।
यह देखकर माता तो हैरान रह गईं, लेकिन बड़े भाइयों की ईर्ष्या और भी बढ़ गई। उन्हें डर सताने लगा कि कहीं चाणुर की बढ़ती ताकत के कारण उनका राजपाट उनसे छीन न लिया जाए।
निर्वासन और तपस्या:
बड़े भाइयों ने चाणुर को अपने से अलग रखने की योजना बनाई। एक दिन, चारों भाई शिकार खेलने निकले। रास्ते में उन्हें एक मृत हाथी मिला जो रास्ता रोक रहा था। बड़े भाइयों ने चाणुर से हाथी को हटाने को कहा। चालाकी से अनजान, चाणुर ने हाथी को उठाकर आकाश की ओर फेंक दिया।
यह देखकर, बड़े भाइयों ने अपने असली इरादे जाहिर कर दिए। उन्होंने कहा, “तुमने क्या किया है? मृत प्राणी को छूना क्षत्रियों के लिए वर्जित है। अब तुम अछूत हो गए हो। हमारे साथ खाने-पीने और रहने का अधिकार तुम खो चुके हो।” इसके बाद, बड़े भाइयों ने चाणुर को अपने से अलग कर दिया।
जब यह खबर राजमहल पहुंची, तो राजा कैलाश ने बड़े भाइयों को समझाने का बहुत प्रयास किया, पर वे नहीं माने। इसी बीच, चौपड़ नामक एक सैनिक ने झूठी गवाही दी, जिसके बाद फैसला हुआ कि चाणुर को सिर्फ चौथे पहर राजा से मिलने का अधिकार होगा।
चौथा पहर आने का इंतजार करते हुए चाणुर को धोखा तब लगा, जब बड़े भाइयों ने कहा कि उनका मतलब चौथे युग में मिलने से था। अपने भाइयों के इस क्रूर व्यवहार से दुखी होकर, चाणुर ने संन्यास ले लिया और जंगलों की ओर चले गए।
जंगल में उन्होंने कठोर तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न किया। भगवान शिव से प्राप्त अलौकिक शक्तियों से, चाणुर ने असहायों की सहायता करनी शुरू की और उन्हें न्याय दिलाया।
सूर्य देश की राजकुमारी और मथुरा का राजा कंस:
अपने भ्रमण के दौरान, चाणुर सूर्य देश के राज्य में पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात राजा की बेटी राजकुमारी लूणा से हुई। लूणा, चाणुर के बलशाली और सुदृढ़ व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनसे विवाह का प्रस्ताव रखती हैं। चाणुर, अपने भक्तिमार्ग से विचलित न होने के लिए, विनम्रतापूर्वक मना कर देते हैं।
लेकिन, राजकुमारी लूणा यह आश्वासन देती हैं कि वे उनके मार्ग में बाधा नहीं बनेंगी। इस वचन के बाद, चाणुर राजकुमारी लूणा के साथ विवाह कर लेते हैं।
कुछ समय बाद, मथुरा का राजा कंस, चाणुर की अद्भुत शक्तियों के बारे में सुनता है। कंस को लगता है कि चाणुर उसकी सेना का एक शक्तिशाली योद्धा बन सकता है, जो भविष्य में देवकी के पुत्र कृष्ण को मारने में उसकी सहायता कर सकता है।
कंस, चाणुर को अपने दरबार में आमंत्रित करता है। जब चाणुर चलने के लिए उठते हैं, तो उनका शरीर इतना विशाल होता है कि उनका लंगोट फट जाता है। वे शरीर को ढकने का अनुरोध करते हैं। तब कंस उन्हें 72 गज की एक पगड़ी भेंट करता है, लेकिन वह भी चाणुर के शरीर को ढक पाने में असफल रहती है।
इस अपमान से क्रोधित होकर, चाणुर यह घोषणा करते हैं कि आज से वे शुद्र कहलाएंगे। कंस के दरबार में पहुंचने पर, उन्हें सेनापति का पद दिया जाता है।
कंस, देवकी के पुत्र कृष्ण को मारने के लिए एक कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन करता है। प्रतियोगिता में महान पहलवानों को आमंत्रित किया जाता है। कृष्ण और उनके भाई बलराम को भी इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए बुलावा भेजा जाता है।
श्री कृष्ण के साथ युद्ध:
अपने कर्तव्य का पालन करते हुए, चाणुर कृष्ण के साथ युद्ध करने के लिए अखाड़े में आते हैं। 22 दिनों तक यह भीषण युद्ध चलता है, लेकिन चाणुर हार मानने को तैयार नहीं होते।
युद्ध को लंबा खींचते देख, कृष्ण अपने भाई बलराम से चाणुर की शक्ति का रहस्य जानने की इच्छा प्रकट करते हैं। बलराम के पास भी इसका कोई उत्तर नहीं होता। तब, कृष्ण ध्यान लगाकर भगवान शिव से प्रार्थना करते हैं।
शिव प्रकट होकर बताते हैं कि चाणुर की शक्ति का रहस्य उनकी पत्नी लूणा के पास है। कृष्ण, अपने मनमोहक रूप का सहारा लेकर लूणा के पास पहुंचते हैं और उनसे चाणुर की शक्ति का रहस्य जानने में सफल होते हैं। लूणा अनजाने में बता देती हैं कि उनके पति की जड़ें पाताल लोक में हैं और उनकी चोटी आकाश छूती है। दूसरे शब्दों में, चाणुर धरती और आकाश के बीच अजेय हैं।
यह रहस्य जानने के बाद, कृष्ण युद्ध में वापस लौट आते हैं। अब वे चाणुर की कमजोरियों का फायदा उठाते हैं। चोटी तक पहुंचने के लिए, कृष्ण चूहों का सहारा लेते हैं। चाणुर चूहों को मारने के लिए चिड़ियों को बुलाते हैं।
इसी तरह, कृष्ण पाताल लोक तक पहुंचने के लिए चींटियों का इस्तेमाल करते हैं। चाणुर चींटियों को मार भगाने के लिए मुर्गों को बुलाते हैं। यह परंपरा आज भी चली आ रही है, जहां भक्त बाबा सिद्ध चानो जी को मुर्गों का प्रसाद चढ़ाते हैं।
22 दिनों के युद्ध के बाद, आखिरकार चाणुर समझ जाते हैं कि उनके सामने भगवान कृष्ण ही हैं। वे घुटने टेककर कृष्ण से क्षमा मांगते हैं और घर लौटने की अनुमति लेते हैं।
घर वापसी पर, क्रोध में आकर चाणुर अपनी पत्नी लूणा को उनके वचन तोड़ने के लिए अभिशाप देते हैं। गुस्से में वे लूणा को बताते हैं कि अगले जन्म में उन्हें मक्खी के रूप में जन्म लेना होगा और उनका नाम तंत्र-मंत्र विद्या से जुड़ा होगा। इसके बाद, चाणुर अपनी पत्नी को छोड़कर, एक बार फिर से जंगल में तपस्या करने चले जाते हैं।
न्याय का धाम:
कहा जाता है कि सबसे पहले बाबा सिद्ध चानो जी आनंदपुर साहिब पहुंचे। फिर, वे हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के देहरा में प्रागपुर आए। अंत में, वे हमीरपुर जिले के समैला में पहुंचे, जहां उनका भव्य मंदिर स्थित है।
आज भी, जो कोई भी व्यक्ति न्याय की उम्मीद खो चुका होता है, वह बाबा सिद्ध चानो जी के दरबार में शरण लेता है। ऐसा माना जाता है कि बाबा जी उनकी सहायता करते हैं और उन्हें न्याय दिलाते हैं।
जय बाबा सिद्ध चानो जी!
बाबा जी की आरती:
जै जै बाबा सिद्ध चानो जी,
रखे तू रखावे तू,
वख्शे तू वख्शावे तू,
दुशमन की दौड़ से,
घोड़े की पौड़ से,
रक्षा करनी बाबा जी,
हिन्दु को काशी, मुसलमान को मक्का,
दुशमन को तेरे नाम का धक्का ।
जय बाबा सिद्ध चानो जी।