करणी माता मंदिर: राजस्थान के इस मंदिर में चूहों को लगाया जाता है भोग
करणी माता का मंदिर राजस्थान के बीकानेर जिले के देशनोक कस्बे में स्थित है। यह मंदिर न केवल अपनी धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ रहने वाले लगभग बीस हज़ार काले चूहों के लिए भी जाना जाता है। इस विशेषता के कारण इसे ‘चूहों वाला मंदिर‘ भी कहा जाता है। करणी माता को दुर्गा माता का अवतार माना जाता है और यहाँ पर चूहों को ‘कावा‘ कहा जाता है। श्रद्धालु इन चूहों को भोजन करवाते हैं और इनकी सुरक्षा की जाती है।
मंदिर का इतिहास और महत्ता
करणी माता का मंदिर 14वीं सदी में बनवाया गया था। करणी माता का जन्म 1387 में राजस्थान के चारण जाति के परिवार में हुआ था और उनका नाम रीघुभाई रखा गया था। वे अपने जनकल्याण के कार्यों के कारण ‘करणी माता’ के नाम से विख्यात हुईं। उनके जन्म से लेकर 150 सालों तक उन्होंने कई चमत्कारिक कार्य किए, जिसके कारण उनकी पूजा आज भी जारी है। मंदिर का निर्माण करणी माता के अंतरध्यान होने के बाद राजपूत राजाओं ने करवाया था।
चूहों का महत्त्व
मंदिर में रहने वाले चूहों को बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। श्रद्धालु अपने पांव को घिसकर चलते हैं ताकि किसी चूहे को चोट न लगे। अगर किसी श्रद्धालु के पैर के नीचे आकर कोई चूहा मर जाता है, तो इसे अपशकुन माना जाता है। दूसरी ओर, अगर कोई चूहा किसी श्रद्धालु के पैर के ऊपर से गुजरता है, तो माना जाता है कि उस पर माँ की विशेष कृपा होती है।
मंदिर में हज़ारों काले चूहों के बीच सफेद चूहे भी पाए जाते हैं। यदि कोई श्रद्धालु सफेद चूहे को देख लेता है, तो माना जाता है कि उसकी मनोकामना पूरी होगी। चूहों की सुरक्षा के लिए मंदिर के प्रांगण में बाहरी जाली लगाई गई है ताकि चील और गिद्दों से उनकी रक्षा हो सके।
नवरात्रि का मेला
वैसे तो मंदिर में साल भर श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है, परंतु नवरात्रों के दौरान यहाँ विशेष मेला लगता है। इस समय श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं और मंदिर की भव्यता का आनंद लेते हैं। नवरात्रि के दौरान मंदिर का माहौल और भी अधिक धार्मिक और भक्ति से भरा होता है।
करणी माता की कहानी
करणी माता की कहानी भी बहुत रोचक और प्रेरणादायक है। उनके चमत्कारिक कार्यों के कारण वे न केवल राजस्थान में बल्कि पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं। करणी माता का विवाह साठिका गाँव के किपोजी चारण से हुआ था। शादी के बाद, करणी माता ने अपना जीवन धार्मिक कार्यों और जनकल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने अपने भक्तों की समस्याओं का समाधान किया और उनकी रक्षा की।
चूहों के पीछे की कहानी
करणी माता के बेटे की कुँए में गिरकर मृत्यु हो गई थी। माता ने यमराज से उसे पुनः जीवित करने की प्रार्थना की। करणी माता की प्रार्थना पर यमराज ने उनके पुत्र को जीवित कर दिया, लेकिन चूहे के रूप में। तब से यही माना जाता है कि करणी माता के वंशज मृत्युपर्यन्त चूहे के रूप में जन्म लेते हैं और इस मंदिर में स्थान पाते हैं। इस कहानी के कारण मंदिर में चूहों का विशेष महत्त्व है और श्रद्धालु उनकी पूजा करते हैं।
मंदिर की वास्तुकला
करणी माता का मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है। मंदिर का निर्माण राजपूत शैली में किया गया है और इसमें सुंदर नक्काशी और जटिल डिजाइन देखने को मिलते हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर की नक़्क़ाशी की गई है, जो इसे और भी भव्य बनाती है। मंदिर के अंदरूनी हिस्से में भी खूबसूरत चित्र और मूर्तियाँ हैं, जो श्रद्धालुओं का मन मोह लेती हैं।
श्रद्धालुओं की आस्था
श्रद्धालुओं की आस्था इस मंदिर में बहुत गहरी है। वे दूर-दूर से आकर यहाँ माता के दर्शन करते हैं और अपनी मनोकामनाएँ पूरी होने की प्रार्थना करते हैं। मंदिर में चूहों को दूध, लड्डू और अन्य खाद्य सामग्री चढ़ाई जाती है। श्रद्धालु यह मानते हैं कि चूहों को भोजन कराने से उनकी समस्याएँ हल होंगी और माँ करणी की कृपा उन पर बनी रहेगी।
पर्यटकों के लिए आकर्षण
करणी माता का मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के लिए बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। यहाँ आने वाले पर्यटक मंदिर की भव्यता और चूहों की अनोखी दुनिया को देखने के लिए उत्सुक रहते हैं। मंदिर में आने वाले पर्यटक यहाँ की संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं को भी करीब से समझ पाते हैं।
निष्कर्ष
करणी माता का मंदिर एक ऐसा स्थान है जहाँ आस्था, भक्ति और चमत्कार का संगम देखने को मिलता है। यहाँ की अनोखी परंपराएँ और चमत्कारिक घटनाएँ इसे विश्व प्रसिद्ध बनाती हैं। श्रद्धालुओं की अटूट आस्था और चूहों के प्रति उनका स्नेह इस मंदिर को और भी विशेष बनाता है। करणी माता का मंदिर एक अद्वितीय धार्मिक स्थल है, जहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं और अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।