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शिव खोड़ी गुफा जम्मू और कश्मीर

जम्मू आएं तो जरूर जाएं शिव खोड़ी

जम्मू और कश्मीर में श्री शिव खोरी भारत में भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध गुफा मंदिर है। शिवखोरी रियासी जिले के पौनी प्रखंड के रांसू गाँव में पहाड़ियों के बीच स्थित है। गुफा मंदिर में 4 फीट ऊंचा स्वयंभू शिव लिंग (स्वाभाविक रूप से निर्मित शिवलिंग) है। शिव खोरी की एक दिलचस्प विशेषता यह है कि शिव के डमरू के आकार की गुफा है। यह दोनों सिरों पर चौड़ा है और बीच में बहुत भीड़भाड़ वाला है। शिव लिंग के बाईं ओर देवी पार्वती की एक छवि देखी जा सकती है। पांच सिर वाले गणेश और कार्तिकेय के चित्र भी देखे जा सकते हैं। शिवलिंग के ऊपर कामदेव को दर्शाती गाय जैसी आकृति देखी जा सकती है। शिवलिंग पर टपकता प्राकृतिक जल पवित्र गंगा नदी की उपस्थिति का प्रतीक है। शिव खोरी में अन्य हिंदू देवताओं की छवियों में रामदरबार शामिल हैं जिनमें भगवान राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की छवियाँ हैं। पूरी गुफा कई अन्य प्राकृतिक छवियों से भरी हुई है, जिन्हें 33 कोटि हिंदू देवी-देवताओं और उनके वाहनों की छवियों के रूप में वर्णित किया गया है। गुफा के दूसरे भाग में देवी महाकाली और सरस्वती की मूर्तियाँ हैं।

पौराणिक कथाएँ

भस्मासुर की कथा

इस गुफ़ा के संबंध में अनेक कथाएं प्रसिद्ध हैं। इन कथाओं में भस्मासुर से संबंधित कथा सबसे अधिक प्रचलित है। भस्मासुर असुर जाति का था। उसने भगवान शंकर की घोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्‍न होकर भगवान शंकर ने उसे वरदान दिया था कि वह जिस व्यक्ति के सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्‍म हो जाएगा। वरदान प्राप्ति के बाद वह ऋषि-मुनियों पर अत्याचार करने लगा। उसका अत्याचार इतना बढ़ गया था कि देवता भी उससे डरने लगे थे। देवता उसे मारने का उपाय ढूँढ़ने लगे। इसी उपाय के अंतर्गत नारद मुनि ने उसे देवी पार्वती का अपहरण करने के लिए प्रेरित किया। नारद मुनि ने भस्मासुर से कहा, वह तो अति बलवान है। इसलिए उसके पास तो पार्वती जैसी सुन्दरी होनी चाहिए, जो कि अति सुन्दर है। भस्मासुर के मन में लालच आ गया और वह पार्वती को पाने की इच्छा से भगवान शंकर के पीछे भागा। शंकर ने उसे अपने पीछे आता देखा तो वह पार्वती और नंदी को साथ में लेकर भागे और फिर शिवखोड़ी के पास आकर रूक गए। यहाँ भस्मासुर और भगवान शंकर के बीच में युद्ध प्रारंभ हो गया। यहाँ पर युद्ध होने के कारण ही इस स्थान का नाम रनसू पड़ा। रन का मतलब ‘युद्ध’ और सू का मतलब ‘भूमि’ होता है। इसी कारण इस स्थान को ‘रनसू’ कहा जाता है। रनसू शिवखोड़ी यात्रा का बेस कैम्प है। अपने ही दिए हुए वरदान के कारण वह उसे नहीं मार सकते थे। भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल से शिवखोड़ी का निमार्ण किया। शंकर भगवान ने माता पार्वती के साथ गुफ़ा में प्रवेश किया और योग साधना में बैठ गये। इसके बाद भगवान विष्णु ने पार्वती का रूप धारण किया और भस्मासुर के साथ नृत्य करने लगे। नृत्य के दौरान ही उन्होंने अपने सिर पर हाथ रखा, उसी प्रकार भस्मासुर ने भी अपने सिर पर हाथ रखा, जिस कारण वह भस्म हो गया। इसके पश्चात भगवान विष्णु ने कामधेनु की मदद से गुफा के अन्दर प्रवेश किया फिर सभी देवी-देवताओं ने वहाँ भगवान शंकर की अराधना की। इसी समय भगवान शंकर ने कहा कि आज से यह स्थान ‘शिवखोड़ी’ के नाम से जाना जायेगा।

समारोह

वार्षिक महा-शिवरात्रि फाल्गुन (फरवरी या मार्च) के महीने में मंदिर में मनाया जाने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण त्यौहार है। त्यौहार के दौरान श्री शिव खोरी श्राइन बोर्ड द्वारा 3 दिवसीय शिव खोरी मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें जम्मू और कश्मीर के विभिन्न हिस्सों से हजारों तीर्थयात्री आते हैं। जम्मू कश्मीर सरकार त्यौहार के दौरान एक मेला सह प्रदर्शनी का आयोजन करती है।

आस-पास के आकर्षण

कटरा वैष्णो देवी मंदिर, बाबा धनसर और भीमगढ़ किला शिवखोरी के पास स्थित अन्य पर्यटन स्थल हैं।

कैसे पहुँचा जाये

रांसू शिवखोरी तीर्थयात्रा का आधार शिविर है। बसें और हल्के मोटर वाहन रांसू तक जाते हैं। श्रद्धालुओं को मंदिर तक पहुँचने के लिए तीन किमी पैदल चलकर जाना पड़ता है। शिवखोरी रियासी से 43 किलोमीटर, कटरा से 80 किलोमीटर, उधमपुर से 120 किलोमीटर, जम्मू से 140 किलोमीटर दूर है। कटरा, उधमपुर और जम्मू से टैक्सी और अन्य हल्के वाहन उपलब्ध हैं। नियमित आधार पर परिवहन सेवाएँ भी उपलब्ध हैं।

शिव खोड़ी मंदिर की गूगल लोकेशन

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