तारा देवी मंदिर, शिमला में स्थित यह शिमला का एक बहुत प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। यह स्थान शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग-शिमला से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तारा देवी मंदिर शिमला और इसके आसपास के मंदिर में से एक बहुत ही शांतिपूर्ण और शांत वातावरण देने वाली एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है।
क्या है प्रथा?
क्या है मंदिर की कहानी-स्थानीय लोगों के अनुसार बताया जाता है कि एक राजा भूपेंद्र सेन जुन्गा नरेश शीलगांव के जंगल में शिकार करने गया उसी समय उसे शेर की गर्जना झाड़ियों से सुनाई दी और नारी की आवाज आई राजा मैं तुम्हारी कुलदेवी हूँ तुम यंही मेरा मंदिर बनाकर तारा मूर्ति स्थापित करो मैं तुम्हारे कुल और पुत्र की रक्षा करूंगी। रजा ने वहाँ पर मंदिर बना दिया और मूर्ति स्थापित कर दी। यह तारा देवी माता का उत्तर भारत का पहला मंदिर बन गया और पूजा-अर्चना प्रतिदिन शुरू कर दी गई। मंदिर में काष्ठ विग्रह तारा चतुर्भुजी एवं अष्टभुजी रूप में स्थापित की थी।
बलि पर प्रतिबन्ध
पहले यहाँ पशु बलि दी जाती थी। अब यह प्रथा बंद कर दी गई है। देवी ने गूर के माध्यम से इच्छा प्रकट की थी कि यहाँ दूधाधारी वैष्णो देवी का मंदिर बनाया जाए। वर्ष 2005 में मंदिर के निर्माण शुरू हुआ और इस मंदिर के साथ ही शिवलिंग मंदिर दूधाधारी वैष्णवी का मंदिर बना दिया। वर्ष 1987 में तारा देवी मंदिर न्यास बनाने के बाद मंदिर का प्रावधान न्यास के अंतर्गत आ गया।