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मणिमहेश यात्रा: हिमालय की गोद में एक दिव्य तीर्थयात्रा

मणिमहेश यात्रा: हिमालय की गोद में एक दिव्य तीर्थयात्रा

धौलाधार, पांगी, और जांस्कर पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ, यह कैलाश पर्वत मणिमहेश-कैलाश के नाम से प्रसिद्ध है और हजारों वर्षों से श्रद्धालुओं द्वारा इस मनोरम शिव तीर्थ स्थल की यात्रा की जा रही है। इस स्थान पर एक छोटा सा पवित्र सरोवर है, जिसे मणिमहेश नाम से जाना जाता है, और यह समुद्र तल से लगभग 13,500 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। इस सरोवर की पूर्व की दिशा में स्थित है वह पर्वत जिसे कैलाश कहा जाता है और इसके शिखर की ऊँचाई समुद्र तल से लगभग 18,564 फुट है। मणिमहेश-कैलाश क्षेत्र हिमाचल प्रदेश में चम्बा जिले के भरमौर में स्थित है।

चम्बा के “गजटियर- 1904” में उपलब्ध जानकारी के अनुसार, सन् 550 ईस्वी में भरमौर शहर सूर्यवंशी राजाओं के मरु वंश के राजा मरुवर्मा की राजधानी थी। इस समय के मंदिर समूह आज भी उस समय के उच्च कला-स्तर को संजीवनी रूप में बनाए हुए हैं। मणिमहेश-कैलाश क्षेत्र बुद्धिल घाटी का एक हिस्सा है और मरु वंश के राजाओं के शासनकाल में यहां एक पूरा मंदिर समूह बना था।

कैलाश यात्रा का प्रमाण सृष्टि के आदि काल से मिलता है, और 550 ईस्वी में भरमौर नरेश मरुवर्मा के भगवान शिव के दर्शन-पूजन के लिए मणिमहेश कैलाश की यात्रा का उल्लेख है। हालांकि, मौजूदा पारंपरिक वार्षिक मणिमहेश-कैलाश यात्रा का संबंध ईस्वी सन् 920 से है, जब मरु वंश के राजा साहिल वर्मा इसे आयोजित करने लगे।

इस यात्रा का आयोजन भरमौर से होता है और हडसर से शुरू होकर मणिमहेश-कैलाश तक लगभग 15 किलोमीटर की पैदल यात्रा के रूप में होती है। यहां के स्थानीय ब्राह्मणों और साधुओं द्वारा आयोजित पारंपरिक छड़ी यात्रा भी हर साल चम्बा के ऐतिहासिक लक्ष्मीनारायण मंदिर से आरंभ होती है।

गौरीकुंड

धन्छो से आगे और मणिमहेश-सरोवर से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर पहले गौरीकुंड है। पूरे पहाड़ी मार्ग में गैर सरकारी संस्थानों द्वारा यात्रियों के लिए नि:शुल्क लंगर सेवा उपलब्ध करायी जाती है। गौरीकुंड से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर पर स्थित है मणिमहेश- सरोवर आम यात्रियों व श्रद्धालुओं के लिए यही अंतिम पड़ाव है। ध्यान देने की बात है कि कैलाश के साथ सरोवर का होना सर्वव्यापक है। तिब्बत में कैलाश के साथ मानसरोवर है तो आदि-कैलाश के साथ पार्वती कुंड और भरमौर में कैलाश के साथ मणिमहेश सरोवर। यहां पर भक्तगण सरोवर के बर्फ से ठंडे जल में स्नान करते हैं। फिर सरोवर के किनारे स्थापित श्वेत पत्थर की शिवलिंग रूपी मूर्ति (जिसे छठी शताब्दी का बताया जाता है) पर अपनी श्रद्धापूर्ण पूजा-अर्चना अर्पण करते हैं। इसी मणिमहेश सरोवर से पूर्व दिशा में स्थित विशाल और गगनचुंबी नीलमणि के गुण धर्म से युक्त हिमाच्छादित कैलाश पर्वत के दर्शन होते हैं।

हिमाचल पर्यटन विभाग द्वारा प्रकाशित प्रचार-पत्र में इस पर्वत को “टरकोइज माउंटेन” कहा गया है। टरकोइज का अर्थ है वैदूर्यमणि या नीलमणि। हालांकि सामान्यत: सूर्योदय के समय क्षितिज में लालिमा होती है और उसके साथ प्रकाश की सुनहरी किरणें निकलती हैं, मणिमहेश में कैलाश पर्वत के पीछे से सूर्य उगते समय सारे आकाशमंडल में नीलिमा छा जाती है और सूर्य के प्रकाश की किरणें नीले रंग में दिखाई देती हैं। इससे पूरा वातावरण नीले रंग से भरा होता है। यह बताता है कि इस कैलाश पर्वत में नीलमणि के गुण-धर्म मौजूद हैं, जिससे प्रकाश की किरणें नीले रंग में चमकती हैं।

पिंडी रूप में दृश्यमान शिखर

कैलाश पर्वत के शिखर के ठीक नीचे एक छोटा-सा शिखर पिंडी रूप में है, जो बर्फ से घिरा होता है और स्थानीय लोग इसे श्रद्धालु शिव का स्वरूप मानते हैं, उस पर नमस्कार करते हैं। इस प्रदर्शन के अनुसार, यह शिखर भारी हिमपात होने पर भी हमेशा दृश्यमान रहता है। स्थानीय मिथकों के अनुसार, वसंत ऋतु से लेकर वर्षा ऋतु के अंत तक, भगवान शिव छह महीने तक सहित पर्वत के शिखर पर निवास करते हैं, और उसके बाद शरद् ऋतु से लेकर वसंत ऋतु तक, वे पतालपुर (पयालपुर) में निवास करते हैं। इस समय, इस क्षेत्र में व्यापार और उद्यम बढ़ जाता है। शीत ऋतु के प्रारंभ से पहले, यहां के निवासी नीचे मैदानी क्षेत्रों में पलायन करते हैं, और जब वसंत ऋतु आती है, तो वे अपने मूल निवास स्थानों पर वापस लौटते हैं। श्रीराधाष्टमी पर मणिमहेश-सरोवर पर अंतिम स्नान इस बात का प्रतीक है कि अब शिव कैलाश छोड़कर नीचे पतालपुर के लिए प्रस्थान करेंगे।

इसी प्रकार, फागुन मास में पड़ने वाली महाशिवरात्रि पर आयोजित मेला भगवान शिव की कैलाश वापसी के उपलक्ष्य में आयोजित किया जाता है। पर्यटन की दृष्टि से भी यह स्थान अत्यधिक मनोरम है। इस कैलाश पर्वत की परिक्रमा भी की जा सकती है, लेकिन इसके लिए पर्वतारोहण का प्रशिक्षण और उपकरण आवश्यक हैं।

सालाना मणिमहेश यात्रा हडसर नामक स्थान से शुरू होती है, जो भरमौर से लगभग 17 किलोमीटर, चम्बा से लगभग 82 किलोमीटर, और पठानकोट से लगभग 220 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पंजाब में पठानकोट मणिमहेश-कैलास यात्रा के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो दिल्ली-उधमपुर मुख्य रेलमार्ग पर है। निकटतम हवाई अड्डा कांगड़ा है। हडसर हिमाचल राज्य परिवहन की बसों द्वारा भी अच्छे से जुड़ा हुआ है। पड़ोसी राज्यों और दिल्ली से भी चम्बा तक की सीधी बस सेवा सुलभ है।

गूगल मैप लोकेशन मणिमहेश लेक

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