हिमाचल प्रदेश देवी–देवताओं की पवित्र भूमि है। परन्तु ज़िला काँगड़ा का अपना विशेष महत्तव है। यहाँ पर अनेक देवी-देवता प्रत्यक्ष एवम् अप्रत्यक्ष रूप में मन्दिरों में विराजमान हैं तथा यहाँ के लोगों का इन दैवी शक्तियों पर अटूट विश्वास है। लोग कोई भी शुभ कार्य करने से पूर्व अपने ईष्ट देवी-देवताओं की पूजा अर्चना विधि विधान अनुसार करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। सारांश है कि यहाँ की संस्कृति में देव पूजा को अति उत्तम स्थान दिया गया है। प्रत्येक देवता एवम् देवी अपनी-अपनी पवित्र अमर कथा से सुशोभित है जिनसे यहाँ की संस्कृति पर देव पूजा की अमूल्य छाप है।
पवित्र स्थान
“श्री नाग देवता जी” (जमुआलां दा नाग) का पवित्र स्थान ग्राम चेलियाँ डाकघर द्रकाटा, तहसील देहरा, ज़िला काँगड़ा (हि0प्र0) में स्थित है, जो कि नाग मन्दिर के नाम से विख्यात हैं। यह पवित्र स्थान जालन्धर-होशियारपुर-धर्मशाला सड़क पर स्थित रानीताल गाँव से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है। गाँव में रानीताल-कांगड़ा-ज्वालामुखी एवम् देहरा की तरफ़ जाने वाली सड़कों से जुड़ा हुआ है। इस पवित्र स्थान तक पहुँचने के लिए मुख्य दो मार्ग हैं। एक रानीताल से पैदल चलने योग्य मार्ग है जो कि लगभग डेढ़ किलोमीटर तथा दूसरा मार्ग रानीताल से देहरा की तरफ़ जाने वाली मुख्य सड़क से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर से जाता है जो कि हल्के वाहन योगय है। इसके अतिरिक्त दो अन्य पैदल चलने योग्य छोटे मार्ग हैं। एक ज्वालामुखी रोड रेलवे स्टेशन से जाता है तथा दूसरा त्रिपल सिंगल-वे रेलवे स्टेशन से होकर जाता है।
पवित्र रमणीक स्थान
“श्री नाग देवता जी” (जमुआलां दा नाग) की पवित्र स्थली में पहुँचकर व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो जाता है। यहाँ का वातावरण अति लुभावना दिखाई देता है। मन्दिर की पिछली तरफ़ एक छोटी-सी पहाड़ी है और उस पर छोटी-छोटी झाड़ियाँ एवम् पेड़-पौधे अति सुन्दर दिखाई देते हैं। मन्दिर के समक्ष पुजारी जी के निवास गृह हैं तथा मन्दिर के बाई तरफ़ खुला मैदान है जिसमें श्रावण मास में लगने वाले नाग देवता जी के बारों (मेलों) में लोग दुकानें एवम् बाज़ार लगाते हैं। मन्दिर के बिल्कुल सामने एक टियाला लगाया हुआ है जिस पर पहले बहुत बड़ा पीपल का पेड़ हुआ करता था, जिसकी छाया में श्रद्धालु प्रायः बैठा करते थे परन्तु काफ़ी अवस्था होने के कारण यह पीपल का पेड़ गिर गया। फिर भी पुजारी श्री प्रमोध सिंह जमुआल जी के अथक प्रयास से यहाँ एक नया पीपल का पौधा लगाया गया है और समय की गति एवम् “श्री नाग देवता जी” की अपार कृपा बड़ा हो रहा है। मन्दिर की बाईं तरफ़ एक छोटी-सी सराय का निर्माण भी पुजारी श्री जमुआल जी ने करवाया है जहाँ श्रद्धालु विश्राम करते हैं।
श्री शेषनाग जी का प्रकट होना
वैसे तो आम धारणा के अनुसार लोग इस दिव्य शक्ति को “श्री नाग देवता” (जमुआलां दा नाग) के अलौकिक नाम से जानते हैं परन्तु पुजारी श्री प्रमोध सिंह जमुआल जी “श्री शेषनाग जी‘ के नाम से सम्बोधन कर रहे थे। इसलिए यहाँ पर” श्री शेषनाग जी” का प्रकट होना लिखा गया है। पुजारी श्री प्रमोध जी के वर्णनानुसार सदियों पहले जमुआल परिवार जम्मू से उठकर ग्राम चेलियाँ में बस गया। श्री नाग देवता जी”जमुआल परिवार के कुल देवता हैं और इन्हें जम्मू से जमुआल परिवार के विद्वान बुज़ुर्ग अपने साथ गाँव चेलियाँ नहीं लाए। श्री नाग देवता जी”ग्राम चेलियाँ में अवश्य आना चाहते थे। जब जमुआल परिवार पूर्ण रूप से बस गया तो, श्री नाग देवता जी”ने विद्वान बुज़ुर्ग को रात को स्वप्न दिया और स्वपन में कहा कि मैं आपका कुल देवता हूँ और आपके साथ ग्राम चेलियाँ में आना चाहता हूँ। जमुआल बुज़ुर्ग इस असमंजस में पड़ गए कि इतनी दूर से कैसे ” श्री नाग देवता जी” को यहाँ लाने का प्रबन्ध किया जाये। श्री नाग देवता जी की कृपा से उन्होंने पालकी लेकर पैदल जम्मू को प्रस्थान किया। क्योंकि उस समय आवागमन के साधन बहुत कम थे। वहाँ से “श्री नाग देवता जी” को पालकी में बैठाकर सहर्ष व सम्मान सहित ग्राम चेलियाँ पहुँचाया गया। यहाँ पर “श्री नाग देवता जी” की मूर्ति (पिण्डी) को विधि विधान से वर्तमान जगह पर विराजमान किया गया। इसी जगह पर एक विलब (बिल) और एक अमलतास (कनैर) का पेड़ था। जमुआल परिवार के विद्वान बुज़ुर्ग शुभ अवसरों एवम् त्यौहारों पर रोट कड़ाही का भोग “श्री नाग देवता जी’ को लगा देते थे और कुल देवता की मान मर्यादा से पूजा अर्चना किया करते थे। परन्तु वह यह नहीं जानते थे कि ” श्री नाग देवता जी” एक दिव्य अलौकिक शक्ति हैं जिसका उन्हें इनकी महानता के परिचय से पता चला।
महानता का परिचय
एक दिन मंदिर की पिछली तरफ़ की पहाड़ी पर गाँव कोठार से जमींदार का ग्वाला प्रतिदिन की भान्ति पशुओं को चराने लाया। लोगों के अन्य पशुओं के झुंड भी यहाँ चर रहे थे, परन्तु चरते-चरते जमींदार के बैल को सांप ने काट लिया। बैल देखते ही देखते धरती पर गिर गया और बेहोशी की स्थिति में आ गया। यह सब देखकर ग्वाला घबरा गया और सोचने लगा यदि बैल मर गया तो मालिक या तो मुङो मार देगा या बैल की क़ीमत मुझसे वसूल करेगा जो मैं देने में सक्षम नहीं हूँ। ग्वाले के मन में विचार आया कि यह जो जमुआल परिवार के कुल देवता की मूर्ति है। वहाँ जाकर प्रार्थना की जाए ताकि बैल बच जाए। अत: ग्वाले ने निर्मल मन से प्रार्थना की और मन्नत मांगी कि यदि बैल बच गया तो मैं अगले दिन अपनी रोटी से कुछ बचाकर आपकी मूर्ति पर चढ़ाउंगा। ग्वाले ने मूर्ति के ऊपर से कच्चे धागे को अपने पास एक बंधन के रूप में रखा जो आज दिन तक प्रसाद के रूप में दिया जाता है तथा मिट्टी को पानी में घोल कर पिला दिया और कुछ क्षणों में बैल ठीक हो गया।
अगले दिन उसने रोटी खाई और बाबा जी के नाम की रोटी रखना भूल गया। वह पशुओं को चराने के लिए उन्हें मुक्त करने लगा तो वह धरती पर गिर पड़ा और उसकी स्थिति पिछले दिन जैसी हो गई। उसने मालिक को सारा वृतान्त सुनाया। मालिक ने नाग देवता से ग्वाले की मन्नत का समर्थन किया और कहा कि जो मन्नत मेरे ग्वाले की है वह तो मैं चढ़ाउंगा ही, साथ ही अलग से आटा व उसमें मीठा डालकर आपकी मूर्ति के समक्ष भेंट करुंगा। परन्तु मेरा बैल ठीक हो जाए। उसके कुछ क्षणों बाद ही बैल स्वस्थ हो गया। उन्होंने सारा वृतान्त जमुआल परिवार के बड़े बुज़ुर्ग विद्वान को सुनाया तथा उनकी उपस्थिति में अपनी मन्नत को मूर्ति के समक्ष भेंट किया। जमुआल परिवार के बड़े बुज़ुर्ग विद्वान ने ग्वाले द्वारा बताए कच्चे धागे, चरणामृत एवं मिट्टी को मूर्ति से स्पर्श करके दर्शन करने वालों को प्रसाद के रूप में-में देना प्रारम्भ किया जो कि आज भी प्रचलन में है।
आज भी लोग यहाँ की मिट्टी लेकर जाते हैं
इस मंदिर की परिक्रमा करने के बाद, आज भी लोग यहाँ की मिट्टी को घर ले जाते हैं। इस मिट्टी को पानी में घोलकर घर के आस-पास छिड़कने की परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में साँप, बिच्छू आदि जहरीले जीव नहीं आते और घर सुरक्षित रहता है।
अथ नमस्कार मन्त्रः (नाग देवता जी)
ओं नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः ।
शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ।।
सरलार्थ:-