ओंकारेश्वर मंदिर, मध्य प्रदेश राज्य के खंडवा जिले में स्थित है, जो नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और हिंदू धर्म के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ओंकारेश्वर का अर्थ “ओंकार का भगवान” है। यह धार्मिक स्थल अपने सुंदर और पवित्र वातावरण के लिए जाना जाता है और साल भर भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है।

मंदिर का इतिहास

ओंकारेश्वर मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी में किया गया था। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसे परमार वंश के राजा मंडहाता ने बनवाया था। राजा मंडहाता भगवान शिव के परम भक्त थे, और उन्होंने इस स्थल पर तपस्या की थी। यह माना जाता है कि उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और यहाँ ज्योतिर्लिंग स्थापित किया।

ओंकारेश्वर मंदिर का निर्माण वास्तुकला की दृष्टि से अद्वितीय है। मंदिर के प्रमुख गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है, जिसे ओंकारेश्वर लिंग के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा, मंदिर के चारों ओर अनेक छोटे मंदिर भी हैं, जो विभिन्न देवताओं को समर्पित हैं।

पौराणिक कहानी

ओंकारेश्वर मंदिर से जुड़ी पौराणिक कहानी भगवान शिव, नर और नारायण नामक दो ऋषियों से जुड़ी है। कहा जाता है कि नर और नारायण भगवान विष्णु के अवतार थे और हिमालय के एक पर्वत पर तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या इतनी कठिन थी कि इससे ब्रह्मा और विष्णु दोनों ही प्रभावित हुए और वे वहां पहुंचे।

भगवान शिव ने इस तपस्या को देखा और प्रसन्न होकर प्रकट हुए। उन्होंने दोनों ऋषियों को वरदान देने का प्रस्ताव दिया। ऋषियों ने भगवान शिव से यह वरदान माँगा कि वे हमेशा इसी स्थान पर निवास करें। भगवान शिव ने उनकी इच्छा को मानते हुए यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित होने का वरदान दिया।

ओंकारेश्वर की अन्य पौराणिक कथाएँ

इसके अलावा, एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, राजा मान्धाता ने यहाँ भगवान शिव की उपासना की थी। उन्होंने वर्षों तक कठोर तपस्या की, जिसके फलस्वरूप भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें वरदान दिया। माना जाता है कि इस वरदान के परिणामस्वरूप ही यहाँ ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ।

धार्मिक महत्त्व और उत्सव

ओंकारेश्वर मंदिर धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यहाँ पर महाशिवरात्रि, सावन मास, और कार्तिक पूर्णिमा जैसे महत्वपूर्ण पर्वों पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इन पर्वों के दौरान, हजारों की संख्या में भक्त यहाँ आते हैं और भगवान शिव के दर्शन करते हैं। मंदिर के परिसर में भक्तों के लिए सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं, जैसे कि रुद्राभिषेक, पूजन सामग्री, और प्रसाद।

नर्मदा नदी और ओंकारेश्वर

ओंकारेश्वर मंदिर का संबंध नर्मदा नदी से भी है। नर्मदा नदी हिंदू धर्म में पवित्र मानी जाती है, और इसकी महिमा का वर्णन विभिन्न पुराणों में मिलता है। नर्मदा नदी के तट पर स्थित होने के कारण, ओंकारेश्वर मंदिर की महत्ता और भी बढ़ जाती है। कहा जाता है कि यहाँ पर स्नान करने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

ओंकारेश्वर जाने का सही समय

ओंकारेश्वर मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच होता है, जब मौसम सुखद रहता है। इस समय, भक्त बिना किसी बाधा के भगवान शिव के दर्शन कर सकते हैं। इसके अलावा, महाशिवरात्रि के समय भी यहाँ विशेष आयोजन होते हैं, जिन्हें देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

अन्य दर्शनीय स्थल

ओंकारेश्वर मंदिर के निकट और भी कई दर्शनीय स्थल हैं, जैसे कि सिद्धनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, और गौरी सोमनाथ मंदिर। ये सभी स्थल धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इसके अलावा, नर्मदा नदी पर बना ओंकारेश्वर बांध भी एक प्रमुख आकर्षण है।

ओंकारेश्वर तक कैसे पहुंचे

ओंकारेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। निकटतम रेलवे स्टेशन खंडवा है, जो ओंकारेश्वर से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा, इंदौर हवाई अड्डा सबसे निकटतम हवाई अड्डा है, जो यहाँ से लगभग 80 किलोमीटर दूर है। यहाँ से टैक्सी और बस सेवा भी उपलब्ध है, जिससे यात्री आसानी से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।

अंत में

ओंकारेश्वर मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह आध्यात्मिक शांति और सद्भाव का प्रतीक भी है। यहाँ की पवित्रता, सुंदरता और शांतिपूर्ण वातावरण भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करते हैं। इस मंदिर का दौरा न केवल भगवान शिव की उपासना के लिए किया जाता है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और इतिहास को भी समझने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। ओंकारेश्वर मंदिर का दर्शन जीवन में एक बार अवश्य करना चाहिए, ताकि भगवान शिव की कृपा प्राप्त की जा सके और आत्मा की शुद्धि हो सके।

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