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मां बज्रेश्वरी देवी कांगड़ा

मां बज्रेश्वरी देवी कांगड़ा

कांगड़ा का (Brijeshwari Temple) माँ ब्रजेश्वरी देवी शक्तिपीठ माँ का एक ऐसा धाम है जहाँ पहुँच कर भक्तों का हर दुख उनकी तकलीफ माँ की एक झलक भर देखने से दूर हो जाती है। यह 52 शक्तिपीठों में से माँ की वह शक्तिपीठ जहाँ सती का दाहिना वक्ष गिरा था और जहाँ तीन धर्मों के प्रतीक के रूप में माँ की तीन पिण्डियों की पूजा होती है।

पहाड़ों के नहलाती सूर्य देव की पवित्र किरणें और भोर के आगमन पर सोने-सी दमकती कांगड़ा की विशाल पर्वत शृंखला को देख ऐसा लगता है कि मानो किसी निपुण जौहरी ने घाटी पर सोने की चादर ही मढ़ दी हो। ऐसा मनोरम दृश्य कि एक पल को प्रकृति भी अपने इस रूप पर इतरा उठे।

कांगड़ा का नगरपुर धाम, माँ ब्रजेश्वरी देवी के शक्तिपीठों में से एक माँ ब्रजरेश्वरी देवी के धाम के बारे में कहते हैं कि जब माँ सती ने पिता के द्वारा किए गए शिव के अपमान से कुपित होकर अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे, तब क्रोधित शिव उनकी देह को लेकर पूरी सृष्टि में घूमे। शिव का क्रोध शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए. शरीर के यह टुकड़े धरती पर जहां-जहाँ गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाया। मान्यता है कि यहाँ माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था इसलिए ब्रजरेश्वरी शक्तिपीठ में माँ के वक्ष की पूजा होती है।

माता ब्रजरेश्वरी का यह शक्तिपीठ अपने आप में अनूठी और विशेष है क्योंकि यहाँ मात्र हिन्दू भक्त ही शीश नहीं झुकाते बल्कि मुस्लिम और सिख धर्म के श्रद्धालु भी इस धाम में आकर अपनी आस्था के फूल चढ़ाते हैं। कहते हैं ब्रजेश्वरी देवी मंदिर के तीन गुंबद इन तीन धर्मों के प्रतीक हैं। पहला हिन्दू धर्म का प्रतीक है, जिसकी आकृति मंदिर जैसी है तो दूसरा मुस्लिम समाज का और तीसरा गुंबद सिख संप्रदाय का प्रतीक है।

तीन गुंबद वाले और तीन संप्रदायों की आस्था का केंद्र कहे जाने वाले माता के इस धाम में माँ की पिण्डियाँ भी तीन ही हैं। मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित यह पहली और मुख्य पिण्डी माँ ब्रजरेश्वरी की है। दूसरी माँ भद्रकाली और तीसरी और सबसे छोटी पिण्डी माँ एकादशी की है। माँ के इस शक्तिपीठ में ही उनके परम भक्त ध्यानु ने अपना शीश अर्पित किया था। इसिलिए माँ के वह भक्त जो ध्यानु के अनुयायी भी हैं वह पीले रंग के वस्त्र धारण कर मंदिर में आते हैं और माँ का दर्शन पूजन कर स्वयं को धन्य करते हैं।

कहते हैं जो भी भक्त मन में सच्ची श्रद्धा लेकर माँ के इस दरबार में पहुँचता है उसकी कोई भी मनोकामना अधूरी नहीं रहती। फिर चाहे मनचाहे जीवनसाथी की कामना हो या फिर संतान प्राप्ति की लालसा। माँ अपने हर भक्त की मुराद पूरी करती हैं। माँ के इस दरबार में पांच बार आरती का विधान है, जिसका गवाह बनने की ख्वाहिश हर भक्त के मन में होती है।

मां ब्रजेश्वरी देवी की इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन माँ ब्रजेश्वरी देवी की पांच बार आरती होती है। सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले माँ की शैय्या को उठाया जाता है। उसके बाद रात्रि के शृंगार में ही माँ की मंगला आरती की जाती है। मंगला आरती के बाद माँ का रात्रि शृंगार उतार कर उनकी तीनों पिण्डियों का जल, दूध, दही, घी और शहद के पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। उसके बाद पीले चंदन से माँ का शृंगार कर उन्हें नए वस्त्र और सोने के आभूषण पहनाएँ जाते हैं। फिर चना पूरी, फल और मेवे का भोग लगाकर संपन्न होती है माँ की प्रात: आरती।

यहाँ, दोपहर की आरती और भोग चढ़ाने की रस्म को गुप्त रखा जाता है। दोपहर की आरती के लिए मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, तब श्रद्धालु मंदिर परिसर में ही बने एक विशेष स्थान पर अपने बच्चों का मुंडन करवाते हैं। मान्यता है कि यहाँ बच्चों का मुंडन करवाने से माँ बच्चों के जीवन की समस्त आपदाओं को हर लेती हैं। मंदिर परिसर में ही भगवान भैरव का भी मंदिर है, लेकिन इस मंदिर में महिलाओं का जाना पूर्ण रूप से वर्जित हैं। यहाँ विराजे भगवान भैरव की मूर्ति बड़ी ही खास है कहते हैं जब भी कांगड़ा पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो इस मूर्ति की आंखों से आंसू और शरीर से पसीना निकलने लगता है। तब मंदिर के पुजारी विशाल हवन का आयोजन कर माँ से आने वाली आपदा को टालने का निवेदन करते हैं और यह ब्रजेश्वरी शक्तिपीठ का चमत्कार और महिमा ही है आने वाली हर आपदा माँ के आशीष से टल जाती है।

दोपहर बाद मंदिर के कपाट दोबारा भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं और भक्त माँ का आशीर्वाद लेने पहुँच जाते हैं। कहते हैं एकादशी के दिन चावल का प्रयोग नहीं किया जाता है, लेकिन इस शक्तिपीठ में माँ एकादशी स्वयं मौजूद है इसलिए यहाँ भोग में चावल ही चढ़ाया जाता है। सूर्यास्त के बाद इन पिण्डियों को स्नान कराकर पंचामृत से इनका दोबारा अभिषेक किया जाता है। लाल चंदन, फूल व नए वस्त्र पहनाकर माँ का शृंगार किया जाता है और इसके साथ ही सांय काल आरती संपन्न होती है। शाम की आरती का भोग भक्तों में प्रसाद रूप में बांटा जाता है। रात को माँ की शयन आरती की जाती है, जब मंदिर के पुजारी माँ की शैय्या तैयार कर माँ की पूजा अर्चना करते हैं।

शक्तिपीठ श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर, कांगड़ा की गूगल लोकेशन

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